skip to main
|
skip to sidebar
Friday, June 27, 2008
क्या कहूँ बात कहाँ जाऊं मैं
अब तो जीने की कोई राह भी बची ही नही ।
क्या मैं रोऊँ किसे हालात सुनाऊं अपने
ज़ख्म सीने की कोई चाह भी बची ही नही । ।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Blog Archive
▼
2008
(7)
►
July
(2)
▼
June
(5)
बज्म -ऐ -रंगीं से बेरुखी कर ली ज़ख्म -ऐ -दौराँ से आ...
बेवज़ह धूप में हम चल पड़े घर से क्यूँकर। हर दफा दर ...
आपको लो अब न होगा थामना , टू...
उनकी फितरत नही मनाने की अपनी आदत है रूठ जाने की ।अ...
क्या कहूँ बात कहाँ जाऊं मैं अब तो जीने की कोई राह ...
About Me
vinay sheel
View my complete profile
No comments:
Post a Comment