Friday, June 27, 2008

बेवज़ह धूप में हम चल पड़े घर से क्यूँकर।

हर दफा दर को शिकायत रहे सर से क्यूँकर।।

आसुओं से कोई पत्थर नही पिघला करता।

दिल को समझाने में ये लग गए अरसे क्यूँकर।।

दर्द तो साथ निभाते ही रहे चोटों का।

अपनी अश्कों से शिकायत है ये बरसे क्यूँकर।।

राहतें ओस की सूरत में मिला करती हैं।

अपनी होठों से शिकायत है ये तरसे क्यूँकर।।

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