Tuesday, July 8, 2008

तेरी खूशबू तेरा एहसास लिए आया हूँ ,

मैं तो ऐ दोस्त हवाओं की तरह आया हूँ।।

कुछ भी बोलूं मेरी हर बात में तू ही तू है ,

कुछ भी सोचूं तो खयालात में तू ही तू है।

मेरा नसीब मेरी जिंदगी भी तू यारब ,

कुछ भी जी लूँ मेरी हर साँस में तू ही तू है।।

दिल में उल्फत सदा - ऐ - वस्ल लिए आया हूँ,

मैं तो ऐ दोस्त फकीरों की तरह आया हूँ।।

तेरी चाहत मिली चाहत के लिए क्या कम है,

तेरा दीदार भी राहत के लिए क्या कम है।

तेरी यादों को धडकनों में सहेजूँ हर पल,

तेरा मिल जाना भी किस्मत के लिए क्या कम है॥

फ़िर भी अरमानों में आकाश लिए आया हूँ,

मैं तो ऐ दोस्त परिंदों की तरह आया हूँ॥

Saturday, July 5, 2008

छाई घटा जो शाम को यादें जगा गई,

सोए समन्दरों में हलचल मचा गई।

तूफां हज़ार बार उठे और उठे खूब,

दास्ताँ - ऐ - इश्क इतनी हवाओं को भा गई।

ख़ुद को जला को हमने दी शम्मा को रौशनी,

यूँ जिंदगी रातों से अदावत निभा गई।

कितना भी दागदार है वह फ़िर भी चाँद है,

रंगत कुछ ऐसी प्यार की उसमें समा गई।

पलकों की सभी कोशिशें नाकाम ही रहीं,

जाने क्यूँ आज आंसुओं में बाढ़ आ गई।

मझधार की रातें या किनारों की हो सुबहें,

हर लहर जिंदगी को सलीके सिखा गई।

आख़िर को विनयशील ही पागल हुआ साबित,

दिल की जहाँ दिमाग से दो बात हो गई।।

Sunday, June 29, 2008

बज्म -ऐ -रंगीं से बेरुखी कर ली
ज़ख्म -ऐ -दौराँ से आशिकी कर ली।
तुमने साए बिछाए राहों में
हमने ही धूप की गली धर ली।।

अब भी मुश्किल का दौर ज़ारी है
मुस्कराहट पे दर्द भारी है।
तुम रहो चांदनी की खिदमत में
अपनी चांदों से पर्दादारी है।
तुम तो गेसू सँवारते ही रहे
हमने ही उलझनें बड़ी कर लीं।।

अब चिरागों की गुफ्तगू समझो
दो घड़ी भर है रात यूँ समझो।
तुम सितारों के राजदार रहो
अब परिंदों का आसमां समझो।
तुमने शबनम समेटे बाँहों में
हमने ही आँख में नमी भर ली।।

Friday, June 27, 2008

बेवज़ह धूप में हम चल पड़े घर से क्यूँकर।

हर दफा दर को शिकायत रहे सर से क्यूँकर।।

आसुओं से कोई पत्थर नही पिघला करता।

दिल को समझाने में ये लग गए अरसे क्यूँकर।।

दर्द तो साथ निभाते ही रहे चोटों का।

अपनी अश्कों से शिकायत है ये बरसे क्यूँकर।।

राहतें ओस की सूरत में मिला करती हैं।

अपनी होठों से शिकायत है ये तरसे क्यूँकर।।

आपको लो अब न होगा थामना ,

टूट जाऊं या बिख़र जाऊं अगर ।

अब न होगी आपकी अवमानना ,

लड़खड़ाऊँ या बहक जाऊं अगर । ।

अब सताएंगी नही वो हिचकियाँ ,

याद तेरी आँख भर जाए अगर ।

अब बुलाएंगी नही वो सिसकियाँ ,

रूठी रातें जी को तडपाए अगर । ।

उनकी फितरत नही मनाने की

अपनी आदत है रूठ जाने की ।

अपनी कोशिश है भूलने की मगर

उनकी यादों की जिद है आने की । ।

क्या कहूँ बात कहाँ जाऊं मैं

अब तो जीने की कोई राह भी बची ही नही ।

क्या मैं रोऊँ किसे हालात सुनाऊं अपने

ज़ख्म सीने की कोई चाह भी बची ही नही । ।